भारत ने नेपाल द्वारा लिपुलेख दर्रे को लेकर उठाए गए ताजा दावों को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है। यह मामला एक बार फिर चर्चा में तब आया जब नेपाल ने भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रे के माध्यम से दोबारा शुरू हो रहे व्यापार पर आपत्ति जताई। नेपाल का कहना है कि यह इलाका उसके भू-भाग में आता है, जबकि भारत ने इस दावे को "ऐतिहासिक तथ्यों से परे और निराधार" बताया है।
🔹 विदेश मंत्रालय का बयान
बुधवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने प्रेस वार्ता में कहा कि लिपुलेख दर्रे को लेकर भारत का रुख पहले से ही स्पष्ट और सुसंगत रहा है। उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच इस दर्रे के माध्यम से सीमा व्यापार 1954 से चल रहा है, और यह दशकों तक निर्बाध रूप से जारी रहा। हालांकि, कोविड-19 महामारी और कुछ अन्य तकनीकी कारणों से इसमें अस्थायी रुकावट आई थी।
अब दोनों देशों ने आपसी सहमति से इस व्यापार मार्ग को दोबारा शुरू करने का फैसला किया है, जो क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देगा और सीमावर्ती इलाकों में आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करेगा।
🔹 नेपाल की आपत्ति और भारत की प्रतिक्रिया
नेपाल सरकार ने भारत और चीन के इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया दी और इसे अपने संप्रभु अधिकारों का उल्लंघन बताया। नेपाल का दावा है कि लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी का क्षेत्र उसके अधिकार क्षेत्र में आता है।
भारत ने इस दावे को "एकतरफा और कृत्रिम विस्तार" करार दिया। प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने स्पष्ट किया कि:
“ऐसे किसी भी दावे का न तो कोई ऐतिहासिक आधार है और न ही यह यथार्थवादी है। एकतरफा रूप से क्षेत्रीय दावों का विस्तार स्वीकार्य नहीं है।”
🔹 लिपुलेख का ऐतिहासिक महत्व
लिपुलेख दर्रा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है और यह भारत-चीन सीमा पर एक प्राचीन व्यापार मार्ग रहा है। सदियों से यह मार्ग व्यापार, तीर्थयात्रा और सांस्कृतिक संवाद का जरिया रहा है।
1954 में भारत और चीन के बीच हुए एक समझौते के तहत इस मार्ग का औपचारिक उपयोग शुरू हुआ था। कैलाश-मानसरोवर यात्रा भी इसी रास्ते से होती है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से भी इस क्षेत्र को बेहद महत्वपूर्ण बनाती है।
🔹 भारत-नेपाल संबंधों में नई चुनौती
भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक जुड़ाव बेहद गहरा है। ऐसे में लिपुलेख को लेकर उठे विवाद ने दोनों देशों के बीच नई चुनौती पैदा कर दी है। हालांकि भारत ने साफ किया है कि वह इस मुद्दे पर संवेदनशील और रचनात्मक बातचीत के लिए तैयार है।
प्रवक्ता ने कहा कि भारत नेपाल के साथ शांति और संवाद के जरिए सभी लंबित मुद्दों को हल करना चाहता है। यह रुख भारत की 'पड़ोसी पहले' नीति का हिस्सा है, जिसमें पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्राथमिकता दी जाती है।
🔚 निष्कर्ष
लिपुलेख दर्रे को लेकर भारत और नेपाल के बीच विवाद कोई नया नहीं है, लेकिन हालिया घटनाक्रम ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। भारत ने जहां इस व्यापारिक गतिविधि को वैध और ऐतिहासिक आधार पर सही ठहराया है, वहीं नेपाल ने इसे संप्रभुता का उल्लंघन बताया है। आने वाले दिनों में इस विवाद का समाधान बातचीत के माध्यम से निकलना ही दोनों देशों के हित में होगा।