मध्य पूर्व में जारी भू-राजनीतिक तनाव एक बार फिर वैश्विक स्तर पर चिंता का कारण बन गया है। अमेरिका द्वारा ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर किए गए हमलों के बाद स्थिति और भी गंभीर हो गई है। इसके जवाब में ईरान ने रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) को बंद करने की योजना बनाई है। यह कदम न केवल इस क्षेत्र में तनाव को और बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक तेल और गैस आपूर्ति पर भी बड़ा असर डालेगा।
क्या है होर्मुज जलडमरूमध्य की अहमियत?
होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया के सबसे व्यस्त और संवेदनशील समुद्री मार्गों में से एक है। यह फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और आगे अरब सागर से जोड़ता है। वैश्विक तेल आपूर्ति का लगभग 20% हिस्सा इसी मार्ग से होकर गुजरता है। यानी हर दिन करीब 1.7 करोड़ बैरल तेल इसी रास्ते से दुनिया भर में सप्लाई होता है। ऐसे में अगर यह रास्ता बंद होता है, तो वैश्विक तेल आपूर्ति पर गंभीर असर पड़ेगा।
भारत के लिए क्यों बढ़ी चिंता?
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और देश की 90% से अधिक तेल आवश्यकता आयात पर निर्भर है। भारत की कुल दैनिक तेल खपत लगभग 55 लाख बैरल है, जिसमें से 15 से 20 लाख बैरल होर्मुज जलडमरूमध्य से आते हैं। इस रास्ते में रुकावट आने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर सीधा असर पड़ेगा, जिससे न केवल तेल की कीमतें बढ़ेंगी, बल्कि महंगाई और आर्थिक अस्थिरता की भी आशंका रहेगी।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया क्या रही?
केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आश्वस्त किया है कि भारत स्थिति पर करीब से नज़र रख रहा है और घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा:
"प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी तेल आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाई है। अब हमारी सप्लाई का बड़ा हिस्सा होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर नहीं आता।"
पुरी ने यह भी बताया कि देश की प्रमुख तेल विपणन कंपनियों के पास कई हफ्तों का तेल स्टॉक मौजूद है। कुछ कंपनियों के पास 25 दिनों तक का भंडारण है, जिससे किसी भी आपात स्थिति से निपटा जा सकता है।
वैकल्पिक स्रोतों से आपूर्ति
भारत ने हाल के वर्षों में रूस, ब्राजील, अमेरिका और पश्चिम अफ्रीका जैसे देशों से तेल आयात बढ़ाया है। मौजूदा स्थिति में भारत रोजाना लगभग 40 लाख बैरल तेल इन विकल्पों से प्राप्त कर रहा है, जिससे होर्मुज पर निर्भरता कम हुई है।
अगर हालात और बिगड़ते हैं तो क्या होगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर होर्मुज जलडमरूमध्य एक हफ्ते से ज्यादा समय तक बंद रहता है, तो इसका असर पूरी ग्लोबल इकोनॉमी पर दिखाई देगा। खासकर तेल की कीमतों में भारी उछाल आएगा। रिपोर्ट्स के अनुसार, अगर कच्चे तेल की कीमत 105 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जाती है, तो भारत सरकार ईंधन पर उत्पाद शुल्क में कटौती करने पर विचार कर सकती है।
तेल कीमतें और जनता पर असर
तेल की कीमतों में वृद्धि का सीधा असर जनता की जेब पर पड़ेगा। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से परिवहन खर्च बढ़ेगा, जिससे खाने-पीने की चीजों से लेकर अन्य रोजमर्रा की वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। इससे महंगाई दर में उछाल आ सकता है, जो पहले से ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय है।
क्या स्थिति सुधर सकती है?
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अमेरिका और ईरान के बीच तनाव कम होता है, तो तेल की कीमतें जल्द ही स्थिर हो सकती हैं। हालांकि इस तरह के संवेदनशील हालात में चीजें कभी भी अप्रत्याशित मोड़ ले सकती हैं। इसलिए भारत जैसे देशों के लिए रणनीतिक भंडारण और वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों का महत्व और भी बढ़ गया है।
निष्कर्ष
ईरान द्वारा होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की योजना न केवल एक रणनीतिक सैन्य निर्णय है, बल्कि यह वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति की रीढ़ पर हमला है। भारत सरकार इस पर बारीकी से नज़र रख रही है और उसने पहले ही वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों के माध्यम से जोखिम को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। फिर भी, यदि संकट लंबा चलता है, तो भारत की अर्थव्यवस्था और आम जनता दोनों पर असर पड़ना तय है।
इसलिए आने वाले दिनों में ईरान-अमेरिका तनाव का हर अपडेट न केवल रणनीतिक रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी बहुत अहम होगा।