कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कांग्रेस के अंदरूनी खेमे में सियासी हलचल तेज हो गई है। पिछले कुछ दिनों से बेंगलुरु के साथ-साथ दिल्ली में भी बैठकों का दौर जारी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने स्पष्ट किया है कि वह राज्य में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी से चर्चा के बाद ही इस मामले का समाधान करेंगे। हालांकि, माना जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में पार्टी आलाकमान इस संबंध में कोई बड़ा और निर्णायक फैसला ले सकता है, जिसमें उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद सौंपने वाला "डीके वाला दांव" भी शामिल हो सकता है।
सिद्धारमैया-शिवकुमार के बीच ढाई साल का 'अघोषित' समझौता
साल 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ कर्नाटक की सत्ता में वापसी की थी। लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर दिग्गज नेता सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच जोरदार टक्कर देखने को मिली। लंबी बातचीत और मान-मनौव्वल के बाद सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री और शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा। पार्टी की जीत में शिवकुमार की संगठनात्मक भूमिका अहम रही थी।
उस समय, यह दावा किया गया था कि दोनों नेताओं के बीच '2.5-2.5 साल' वाले फॉर्मूले पर सहमति बनी है। इसके तहत, शुरुआती ढाई साल के लिए सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बनेंगे और फिर अंतिम ढाई साल के लिए शिवकुमार को सत्ता सौंपी जाएगी। पिछले हफ्ते, 20 नवंबर को कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के पहले ढाई साल पूरे हो गए हैं, जिसके कारण मुख्यमंत्री बदलने की अटकलें पूरी तरह गरमा गई हैं।
कांग्रेस का घटता ग्राफ और नेतृत्व की विफलता
आमतौर पर, कांग्रेस की रणनीति बार-बार मुख्यमंत्री बदलने की नहीं रही है। पार्टी एक ही मुख्यमंत्री के साथ कार्यकाल पूरा करने की नीति पर चलती है। हालांकि, 2014 में केंद्र की सियासत में नरेंद्र मोदी युग शुरू होने के बाद से कांग्रेस की पकड़ केंद्र ही नहीं, राज्यों में भी लगातार ढीली हुई है। उसका राजनीतिक ग्राफ लगातार सिकुड़ता जा रहा है।
मई 2014 के समय कांग्रेस की सत्ता कर्नाटक समेत 13 राज्यों में थी, जबकि बीजेपी की सत्ता महज 7 राज्यों में थी। लेकिन इसके बाद, कांग्रेस की यह सबसे बड़ी विफलता रही कि जिन राज्यों में उसकी सरकार थी, वहां के मुख्यमंत्री लगातार दूसरी बार जीत हासिल नहीं कर सके।
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सत्ता गंवाने का सिलसिला: दिल्ली (15 साल बाद), महाराष्ट्र (पृथ्वीराज चव्हाण), हरियाणा (भूपिंदर सिंह हुड्डा), असम (तरुण गोगोई), और उत्तराखंड में कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी।
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कर्नाटक का इतिहास: कर्नाटक में सिद्धारमैया की अगुवाई में 2018 के चुनाव में कांग्रेस को हार मिली थी।
नेतृत्व परिवर्तन का 'पंजाब मॉडल'
हाल के वर्षों में, कांग्रेस ने सत्ता बचाने की कोशिश में नेतृत्व परिवर्तन का दांव भी चला है, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया।
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पंजाब में नाकामी: पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर अंतिम समय में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया। पार्टी की यह रणनीति काम नहीं आई और 2022 के चुनाव में पार्टी को करारी हार मिली।
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राजस्थान में स्थिरता: इसके विपरीत, राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच लंबी खींचतान के बावजूद आलाकमान ने गहलोत पर ही भरोसा जताया, लेकिन 2023 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता गंवा बैठी।
अब देखना यह है कि कर्नाटक में आलाकमान क्या फैसला लेता है। पिछले 11 वर्षों का ट्रेंड बताता है कि कांग्रेस एक ही मुख्यमंत्री पर भरोसा करती है, लेकिन यह भी सच है कि यह रणनीति पार्टी को लगातार जीत नहीं दिला सकी है। क्या कांग्रेस 2023 में जीत के नायक माने गए डीके शिवकुमार को मौका देकर, लगातार दूसरी जीत हासिल करने का एक दशक पुराना सपना पूरा करने की कोशिश करेगी? यह फैसला कर्नाटक और पूरे दक्षिण भारत में कांग्रेस के भविष्य के लिए निर्णायक हो सकता है।