भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में हमेशा ही तनाव और अनिश्चितता रही है, लेकिन 27 अप्रैल को हुए पहलगाम अटैक के बाद से भारत ने पाकिस्तान के प्रति अपने रवैये में काफी सख्ती दिखानी शुरू कर दी है। इस हमले में भारत के कई सैनिक शहीद हो गए थे, जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान से अपनी रणनीति में बड़े बदलाव किए हैं। इस हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि तोड़ दी, पाकिस्तान से वीजा रद्द कर दिए और भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने का आदेश दे दिया। ये सभी कदम भारत के सख्त रवैये को दर्शाते हैं, और इससे पाकिस्तान की स्थिति और भी खराब हो गई है।
भारत का सख्त कदम
पहलगाम अटैक के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ये कड़े कदम उठाए। सिंधु जल संधि, जो कि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच पानी के बंटवारे के लिए बनाई गई थी, को तोड़ने का निर्णय भारत ने पाकिस्तान के लगातार सीमा पर हमले और आतंकवाद को बढ़ावा देने के मद्देनजर लिया। भारत ने यह स्पष्ट किया है कि जब तक पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करेगा, तब तक वह इस संधि को जारी नहीं रखेगा। यह भारत का एक कड़ा संदेश था कि वह अपने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कोई समझौता नहीं करेगा।
इसी तरह, पाकिस्तान से वीजा रद्द करना और भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने का आदेश देना, भारत द्वारा पाकिस्तान को दी गई एक और कड़ी चेतावनी थी। यह कदम भारत सरकार की तरफ से यह दिखाने का था कि भारत अब पाकिस्तान के साथ किसी प्रकार की नरमी बरतने के लिए तैयार नहीं है। इस सख्त रवैये से पाकिस्तान को यह संदेश जा रहा है कि अगर वह अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करता तो उसे और भी कड़े कदमों का सामना करना पड़ सकता है।
शाहबाज शरीफ की तबियत और अस्पताल में भर्ती
भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए इन कड़े कदमों का असर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ पर भी पड़ा है। हाल ही में खबर आई है कि शाहबाज शरीफ को अस्पताल में भर्ती किया गया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का अस्पताल में एडमिट होना अपने आप में एक बड़ा राजनीतिक संकेत है। हालांकि अभी तक यह नहीं पता चल सका है कि उन्हें क्या हुआ है, लेकिन अस्पताल के पेपर से यह जानकारी मिली है कि वह बीमार हैं। यह भी सामने आया कि शाहबाज शरीफ 27 अप्रैल को अस्पताल में भर्ती हुए थे, और उनका इलाज एक प्रमुख रावलपिंडी अस्पताल में चल रहा है।
शाहबाज शरीफ के अस्पताल में भर्ती होने के बाद पाकिस्तानी मीडिया में यह खबर तेजी से फैल गई है, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने इस मामले को गुप्त रखने की कोशिश की है। अस्पताल के पेपर में यह भी साफ लिखा गया है कि उनके इलाज से संबंधित जानकारी को मीडिया से छुपाया जाए। यह किसी भी सरकार के लिए एक सामान्य प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन इस समय पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति और भारत से बढ़ते तनाव को देखते हुए इस खबर का विशेष महत्व है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के स्वास्थ्य पर सवाल
शाहबाज शरीफ के अस्पताल में भर्ती होने के बाद से उनके स्वास्थ्य पर सवाल उठने लगे हैं। कुछ लोग इसे भारत के प्रति पाकिस्तान की नीति में बदलाव के रूप में देख रहे हैं, जबकि कुछ इसे उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति से जोड़कर देख रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह पाकिस्तान के लिए एक सख्त झटका हो सकता है, क्योंकि अगर शाहबाज शरीफ की तबियत और स्वास्थ्य की स्थिति गंभीर हुई तो पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन सकती है।
इस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की बीमारी को लेकर किसी भी प्रकार की स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है, और इसे लेकर पाकिस्तानी मीडिया भी चुप है। हालांकि, यह भी संकेत मिल रहे हैं कि पाकिस्तान सरकार इस मामले को तूल नहीं देना चाहती है ताकि देश की राजनीति और पाकिस्तान-भारत रिश्तों में और भी खटास न आए।
पाकिस्तान के लिए राजनीतिक संकट
भारत के द्वारा उठाए गए कड़े कदमों और शाहबाज शरीफ की तबियत के कारण पाकिस्तान के सामने एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा हो गया है। पाकिस्तान को भारत से इस समय और भी कड़ी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ सकता है, जिससे पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति और भी कमजोर हो सकती है। यही कारण है कि शाहबाज शरीफ की तबियत और उनके अस्पताल में भर्ती होने के बाद पाकिस्तान में यह खबर तेजी से फैल गई है, और राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गई है।
निष्कर्ष
भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए कड़े कदम, जैसे सिंधु जल संधि तोड़ना और पाकिस्तानियों को भारत छोड़ने का आदेश देना, यह संकेत देते हैं कि भारत अब पाकिस्तान के साथ किसी भी प्रकार की समझौता नीति से दूर जा रहा है। दूसरी ओर, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की अस्पताल में भर्ती होने की खबर यह दर्शाती है कि पाकिस्तान के अंदर राजनीतिक संकट गहराता जा सकता है। यह घटनाक्रम पाकिस्तान के लिए एक बड़ा संकेत है कि उसे अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ेगा, अन्यथा उसे और भी कड़े फैसलों का सामना करना पड़ सकता है।