महाराष्ट्र के नगर परिषद और नगर पंचायत चुनावों के नतीजों ने राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है। महायुति (भाजपा-शिंदे-अजित पवार) की प्रचंड जीत और महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की करारी हार के बाद अब गठबंधन के भीतर की कड़वाहट खुलकर सामने आ गई है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने अपनी सहयोगी पार्टी कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए उसे ‘टूरिस्ट पार्टी’ करार दिया है।
शिवसेना (यूबीटी) का तीखा तंज
शिवसेना (यूबीटी) के नेता आनंद दुबे के बयान ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। दुबे ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "कांग्रेस पार्टी अब एक टूरिस्ट पार्टी बनकर रह गई है। चुनाव आते ही इनके पोस्टर और बैनर तो दिखते हैं, लेकिन जमीन पर काम नदारद रहता है। वे हर बार बीएमसी चुनाव लड़ते हैं, लेकिन पिछले 30 सालों से विपक्ष में बैठे हैं।"
दुबे ने राहुल गांधी और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी सिर्फ बड़े चेहरों के दम पर चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि जमीनी कार्यकर्ताओं का ढांचा कमजोर हो चुका है। उनका मानना है कि कांग्रेस की इस "कमजोर परफॉर्मेंस" का खामियाजा पूरे गठबंधन को भुगतना पड़ रहा है।
निकाय चुनाव के आंकड़े: महायुति का दबदबा
इन चुनावों में महायुति ने विपक्ष का लगभग सूपड़ा साफ कर दिया है। 288 निकायों में से महायुति ने 200 से ज्यादा पर कब्जा जमाया है:
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भाजपा: 117 से ज्यादा नगराध्यक्ष पद जीतकर नंबर वन पार्टी बनी।
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शिवसेना (शिंदे गुट): 53 पदों पर जीत हासिल की।
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एनसीपी (अजित पवार): 37 निकायों में जीत दर्ज की।
वहीं, एमवीए की स्थिति काफी चिंताजनक रही। हालांकि कांग्रेस ने 35 निकायों में जीत दर्ज की, लेकिन उद्धव गुट और शरद पवार गुट केवल 8-8 सीटों पर ही सिमट गए। उद्धव गुट के लिए यह हार विशेष रूप से दर्दनाक है क्योंकि वे खुद को जमीनी स्तर पर सबसे मजबूत संगठन होने का दावा करते रहे हैं।
कलह की मुख्य वजह: सीट बंटवारा और भितरघात
उद्धव गुट की नाराजगी के पीछे केवल चुनावी हार नहीं, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान हुई खींचतान भी है। सूत्रों के अनुसार, कई सीटों पर कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) के बीच सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन पाई, जिसके परिणामस्वरूप दोनों दलों के उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे। इस 'फ्रेंडली फाइट' ने एमवीए के वोटों का बंटवारा कर दिया, जिसका सीधा फायदा महायुति को मिला।
बीएमसी चुनाव पर संकट के बादल
ये नतीजे 15 जनवरी को होने वाले बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) और अन्य 28 नगर निगम चुनावों के लिए एक 'खतरे की घंटी' हैं। बीएमसी उद्धव ठाकरे का सबसे मजबूत किला रहा है, जहां वे 30 साल से सत्ता में हैं। भाजपा और शिंदे गुट की बढ़ती ताकत ने अब इस किले की दीवारों में सेंध लगा दी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि एमवीए के भीतर यह आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा, तो बीएमसी चुनाव में महायुति को हराना नामुमकिन हो जाएगा। आनंद दुबे का 'टूरिस्ट पार्टी' वाला बयान यह दर्शाता है कि गठबंधन में अविश्वास की खाई गहरी हो चुकी है।
निष्कर्ष
स्थानीय निकाय चुनावों को हमेशा 'सेमीफाइनल' माना जाता है। महायुति की जीत मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उनकी टीम की रणनीति की सफलता है। वहीं, एमवीए के लिए यह आत्ममंथन का समय है। यदि वे 2029 के विधानसभा चुनावों में अपनी प्रासंगिकता बचाए रखना चाहते हैं, तो उन्हें आपसी कलह त्यागकर जमीनी स्तर पर एकजुट होना होगा। फिलहाल, उद्धव गुट का कांग्रेस पर हमला गठबंधन की एकता पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है।