बांग्लादेश में हालिया हिंसा के बाद हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। खास तौर पर हिंदू समुदाय पर अत्याचार और हाल ही में हिंदू युवक दीपू दास की हत्या की खबरों ने चिंता बढ़ा दी है। इन घटनाओं को लेकर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। महाराष्ट्र के नागपुर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, “इसका कड़ा विरोध होना चाहिए और सभी हिंदुओं को एकजुट होकर इसका सामना करना चाहिए।” उनके इस बयान के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है।
बांग्लादेश और बंगाल की घटनाओं पर चिंता
स्वामी रामभद्राचार्य ने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और कथित अत्याचारों पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं केवल एक देश तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में असुरक्षा की भावना पैदा करती हैं। उनके मुताबिक, हिंदू समाज को इन परिस्थितियों में बिखरने के बजाय संगठित होकर शांतिपूर्ण तरीके से अपने अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।
इसी बातचीत के दौरान उन्होंने पश्चिम बंगाल का भी जिक्र किया। बंगाल में बाबरी मस्जिद की नींव रखने से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा, “ऐसा संभव नहीं है और हम ऐसा नहीं होने देंगे।” इस बयान को लेकर भी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। समर्थकों का कहना है कि वे हिंदू समाज की भावनाओं की बात कर रहे हैं, जबकि आलोचकों का मानना है कि इस तरह के बयान सामाजिक तनाव को बढ़ा सकते हैं।
हिंदुओं की एकजुटता पर लगातार जोर
यह पहली बार नहीं है जब स्वामी रामभद्राचार्य ने हिंदुओं की एकजुटता की बात कही हो। इससे पहले भी वे कई मंचों से हिंदू समाज को संगठित रहने का संदेश देते रहे हैं। उनके बयानों में अक्सर यह बात झलकती है कि वे मौजूदा हालात में हिंदू समुदाय को सतर्क और एकजुट देखना चाहते हैं। बंगाल में जारी हिंसा और हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचारों का जिक्र करते हुए उन्होंने एक बार फिर एकजुटता का आह्वान किया और कहा कि समाज को अपने हितों के लिए जागरूक रहना होगा।
बयानों की वजह से अक्सर रहते हैं चर्चा में
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य अपने बयानों की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। वे एक प्रसिद्ध कथावाचक हैं और उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार के साथ-साथ पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। हालांकि, अपने कथा प्रसंगों और सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान वे कई बार ऐसे बयान दे देते हैं, जो विवाद का कारण बन जाते हैं।
राम मंदिर निर्माण के पूरा होने के बाद धर्म ध्वजा समारोह से पहले उन्होंने कहा था, “हम एल्फाबेट से चल रहे हैं। अ से अयोध्या हो चुका, अब क और म बाकी हैं, यानी काशी और मथुरा।” इस बयान को लेकर भी काफी विवाद हुआ था। इसके अलावा उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को “मिनी पाकिस्तान” कह दिया था, जिसकी व्यापक आलोचना हुई थी। आलोचकों का कहना है कि इस तरह के बयान सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कौन हैं जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य?
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य एक प्रमुख आध्यात्मिक और धार्मिक संत हैं। नेत्रहीन होने के बावजूद वे असाधारण विद्वान माने जाते हैं। कहा जाता है कि वे 22 भाषाओं के ज्ञाता हैं और अधिकांश हिंदू धर्मग्रंथ उन्हें कंठस्थ हैं। वे अपने प्रवचनों और शास्त्रार्थ के जरिए कई बार अपने गहन ज्ञान का परिचय दे चुके हैं।
स्वामी रामभद्राचार्य अब तक 100 से अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। वे चित्रकूट स्थित तुलसी पीठ के संस्थापक हैं और विकलांग विश्वविद्यालय के आजीवन कुलपति भी हैं। राम जन्मभूमि मामले में भी उन्होंने अदालत में महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत किए थे, जिसे उनके समर्थक उनके योगदान के रूप में देखते हैं।
बयान, समर्थन और विवाद
हालांकि, उनकी विद्वता और धार्मिक योगदान के साथ-साथ उनके विवादित बयान भी अक्सर चर्चा का विषय बनते हैं। समर्थक उन्हें हिंदू समाज की आवाज बताते हैं, जबकि आलोचक कहते हैं कि सार्वजनिक मंचों से दिए गए ऐसे बयान समाज में ध्रुवीकरण को बढ़ा सकते हैं। बांग्लादेश हिंसा और बंगाल से जुड़े उनके ताजा बयान भी इसी बहस का हिस्सा बन गए हैं।
फिलहाल, स्वामी रामभद्राचार्य की इस प्रतिक्रिया ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि संवेदनशील मुद्दों पर संतों और सार्वजनिक हस्तियों के बयानों की भूमिका क्या होनी चाहिए और उन्हें किस तरह संतुलन बनाए रखना चाहिए।