श्रीहरिकोटा: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज एक बार फिर इतिहास रच दिया है। बुधवार, 24 दिसंबर 2025 की सुबह, इसरो ने अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट LVM3-M6 (जिसे 'बाहुबली' भी कहा जाता है) के जरिए ब्लू बर्ड ब्लॉक-2 (BlueBird Block-2) सैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। यह मिशन न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया की मोबाइल कनेक्टिविटी के भविष्य के लिए एक क्रांतिकारी कदम है।
स्पेस से सीधे मोबाइल पर आएगा सिग्नल
आमतौर पर मोबाइल नेटवर्क के लिए टेलीकॉम कंपनियों को ऊंचे-ऊंचे टावर लगाने पड़ते हैं। लेकिन इस सैटेलाइट के चालू होने के बाद, मोबाइल चलाने के लिए किसी टावर या ग्राउंड एंटीना की जरूरत नहीं होगी। आपका स्मार्टफोन सीधे अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट से जुड़ जाएगा। यह तकनीक विशेष रूप से उन दुर्गम इलाकों (जैसे रेगिस्तान, गहरे समुद्र या घने जंगल) के लिए वरदान साबित होगी जहां टावर लगाना असंभव है।
मिशन की 5 बड़ी खासियते:
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ऐतिहासिक वजन: यह इसरो द्वारा लॉन्च किया गया अब तक का सबसे भारी कमर्शियल सैटेलाइट है, जिसका वजन लगभग 6,100 किलोग्राम (करीब 6.1 टन) है।
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विशाल एंटीना: इस सैटेलाइट में 223 वर्ग मीटर का एक विशालकाय फेज्ड-अरे एंटीना लगा है, जो अंतरिक्ष से सीधे स्मार्टफोन तक सिग्नल भेजने में सक्षम है।
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डायरेक्ट-टू-सेल तकनीक: इसके लिए यूजर को अपने फोन में किसी अलग हार्डवेयर या कस्टमाइजेशन की जरूरत नहीं होगी। सामान्य 4G और 5G फोन पर ही सेलुलर ब्रॉडबैंड मिलेगा।
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101वां सफल मिशन: यह इसरो का इस साल का आखिरी और अंतरिक्ष इतिहास का 101वां मिशन है।
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हाई-स्पीड कनेक्टिविटी: यह सैटेलाइट 120 Mbps तक की पीक स्पीड देने में सक्षम है, जिससे बिना किसी रुकावट के वीडियो कॉल और स्ट्रीमिंग की जा सकेगी।
क्यों खत्म हो जाएगी मोबाइल टावरों की जरूरत?
वर्तमान में 4G और 5G नेटवर्क के लिए कंपनियों को हर कुछ किलोमीटर पर टावर लगाने पड़ते हैं। अगर आप टावर की रेंज से बाहर जाते हैं, तो नेटवर्क गायब हो जाता है। लेकिन 'ब्लू बर्ड ब्लॉक-2' सैटेलाइट को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) यानी पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया है। यहाँ से यह सैटेलाइट पूरी पृथ्वी को कवर करेगा, जिससे मोबाइल रेंज या टावर की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो सकती है।
इसरो चेयरमैन का बयान
लॉन्च के बाद इसरो के चेयरमैन डॉ. वी. नारायणन ने टीम को बधाई देते हुए कहा, "यह भारत के लॉन्च व्हीकल द्वारा उठाया गया अब तक का सबसे भारी पेलोड है। यह मिशन साबित करता है कि इसरो अब ग्लोबल कमर्शियल लॉन्च मार्केट में एक बड़ी शक्ति बन चुका है।" यह प्रोजेक्ट अमेरिकी कंपनी AST SpaceMobile और इसरो की वाणिज्यिक शाखा NSIL के बीच एक समझौते का हिस्सा है। इस तकनीक के पूरी तरह सफल होने के बाद, मोबाइल टावरों और समुद्र के नीचे बिछी लंबी केबलों पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी।