सोनम वांगचुक, जो कि लद्दाख के एक लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् हैं, समय-समय पर लद्दाख और वहां के लोगों की भलाई के लिए आवाज उठाते रहते हैं। अब फिर से वे अपनी कुछ अहम मांगों को लेकर हड़ताल शुरू करने वाले हैं। इस मामले को लेकर लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) की बैठक 15 जुलाई को तय की गई है। इस लेख में हम जानेंगे कि सोनम वांगचुक की मुख्य मांगें क्या हैं, लद्दाख के लोगों के लिए इन मांगों का क्या महत्व है और लद्दाख की स्थिति क्या है।
सोनम वांगचुक की मांगें क्या हैं?
सोनम वांगचुक प्रमुख रूप से लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत लाने और पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं। वे कहते हैं कि छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को विशेष संरक्षण मिलेगा और यहां के निवासियों की सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक पहचान मजबूत होगी।
उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, "2020 में केंद्र सरकार ने चुनाव जीतने के बाद लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा उपायों पर चर्चा करने का वादा किया था, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।" यदि 15 जुलाई की बैठक में इन मांगों पर सकारात्मक बातचीत नहीं होती है, तो सोनम वांगचुक भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे।
लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की भी लंबे समय से मांग चल रही है, क्योंकि वर्तमान में यह केंद्र शासित प्रदेश के रूप में कार्यरत है। राज्य का दर्जा मिलने से वहां के लोगों को अधिक प्रशासनिक एवं राजनीतिक अधिकार मिलेंगे, जिससे उनकी समस्याओं का समाधान बेहतर तरीके से किया जा सकेगा।
छठी अनुसूची क्या है?
छठी अनुसूची भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जिसे 1949 में संविधान सभा ने अपनाया था। इसका उद्देश्य आदिवासी इलाकों में उनके अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें स्वायत्तता प्रदान करना है।
संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत यह प्रावधान आता है। इसमें राज्यपाल को अधिकार दिया गया है कि वे स्वायत्त जिलों या क्षेत्रों का गठन और पुनर्गठन कर सकें। इसके तहत आदिवासी क्षेत्रों को विशेष सुरक्षा, संरक्षण और स्थानीय स्वशासन मिलता है।
छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले इलाकों को विशेष सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिलती है। साथ ही वहां के लोगों को आरक्षण, भूमि अधिकार और रोजगार में प्राथमिकता भी दी जाती है।
लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने का क्या महत्व है?
लद्दाख भौगोलिक रूप से बेहद संवेदनशील और रणनीतिक क्षेत्र है। यहां का क्षेत्रफल खारदुंगला और नुब्रा घाटी से लेकर सियाचिन ग्लेशियर के पास तक फैला है। इसके अलावा लद्दाख पाकिस्तान और चीन के साथ सीमावर्ती क्षेत्र भी है, जो इसे सैन्य दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।
यदि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो यहां के निवासियों को अपनी सांस्कृतिक विरासत, भूमि और संसाधनों पर बेहतर अधिकार मिलेंगे। यह क्षेत्र अब तक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में प्रशासनिक रूप से सीमित अधिकारों के अधीन है, जबकि छठी अनुसूची के तहत उन्हें स्थानीय स्वशासन और संरक्षण मिलेगा।
इसके अलावा छठी अनुसूची के अंतर्गत रोजगार और शिक्षा में आरक्षण मिलेगा, जो स्थानीय युवाओं के लिए बेहतर अवसर प्रदान करेगा। इससे न केवल सामाजिक सुरक्षा बढ़ेगी बल्कि आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा।
लद्दाख के लोग क्यों मांग रहे हैं छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा?
लद्दाखी लोग अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा और परंपराओं को सुरक्षित रखना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि बिना राज्य के दर्जे के वे अपनी पहचान और अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाएंगे।
राज्य का दर्जा मिलने से लद्दाख में स्थानीय प्रशासनिक निर्णय लेने में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी। इससे विकास योजनाएं और संसाधनों का बेहतर वितरण होगा। इसके अलावा, राज्य का दर्जा मिलने पर केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता भी बढ़ेगी, जो क्षेत्र के समग्र विकास में मददगार होगी।
लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) की भूमिका
LAB और KDA दोनों ही लद्दाख के प्रमुख राजनीतिक व सामाजिक संगठन हैं। इन दोनों संगठनों को सोनम वांगचुक ने 15 जुलाई को इस मुद्दे पर बातचीत के लिए बुलाया है। इस बैठक का उद्देश्य छठी अनुसूची और राज्य के दर्जे को लेकर एक साझा रणनीति बनाना है।
यदि इस बैठक में कोई ठोस निर्णय नहीं होता, तो सोनम वांगचुक भूख हड़ताल पर बैठने की चेतावनी दे चुके हैं, जिससे लद्दाखी लोगों की आवाज़ केंद्र सरकार तक पहुंच सके।