देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने उस वकील पर अवमानना की कार्रवाई से इनकार कर दिया है जिसने कुछ दिन पहले मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की थी। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की घटनाएं निंदनीय तो हैं, लेकिन इन पर अत्यधिक ध्यान देना या कानूनी कार्रवाई करना ऐसे व्यक्तियों को अनावश्यक प्रसिद्धि दे सकता है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि अदालत में नारे लगाना या जूते फेंकना निश्चित रूप से कोर्ट की अवमानना है, लेकिन यह संबंधित न्यायाधीश पर निर्भर करता है कि वह कार्रवाई करें या नहीं।
अवमानना नोटिस से मिलेगी बेवजह की अहमियत: सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि यदि इस वकील के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की गई, तो यह उसकी हरकत को और अधिक सुर्खियों में ला देगा, जिससे अनावश्यक रूप से उसका प्रचार होगा। अदालत ने कहा — “इस घटना को अपने आप खत्म होने दें। ऐसे मामलों में सबसे बड़ा दंड यह होता है कि व्यक्ति को कोई महत्व ही न दिया जाए।” कोर्ट का यह रुख दरअसल उस सिद्धांत पर आधारित है कि कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल कभी-कभी अनजाने में किसी गैर-जिम्मेदार व्यक्ति को मंच दे सकता है। इसलिए अदालत ने संयम बरतते हुए इस मामले को तूल न देने का फैसला किया।
CJI गवई ने भी कार्रवाई से किया था इनकार
इससे पहले मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने खुद इस मामले में कोई कार्रवाई न करने की बात कही थी। उन्होंने घटना के तुरंत बाद कहा था कि वे नहीं चाहते कि इस मामले को ज्यादा बढ़ाया जाए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने इस घटना को गंभीर मानते हुए कोर्ट से आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की मांग की थी। वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने बार एसोसिएशन की ओर से दलील देते हुए कहा कि
“यह मामला केवल एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं है, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा और न्यायिक संस्थानों की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है।” सिंह ने यह भी कहा कि आरोपी वकील ने मीडिया को इंटरव्यू देकर अपनी हरकत का महिमामंडन किया है, जिससे न्यायपालिका की छवि को नुकसान पहुंचा है।
जस्टिस सूर्यकांत का संतुलित रुख
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अदालत इस बात से सहमत है कि यह कृत्य गंभीर है और इसमें आपराधिक अवमानना के तत्व हैं। लेकिन उन्होंने सवाल उठाया कि जब खुद CJI ने नरमी बरती है, तो क्या अदालत को इस मुद्दे को आगे बढ़ाना चाहिए? उन्होंने कहा — “न्यायालय को यह विचार करना चाहिए कि क्या इस व्यक्ति को इतना महत्व दिया जाना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कभी-कभी चुप्पी सबसे प्रभावी उत्तर होती है।”
अदालत ने अंततः यह निष्कर्ष निकाला कि मामले को आगे न बढ़ाना ही न्यायिक गरिमा के अनुरूप होगा।
क्या था पूरा मामला?
6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट के अंदर एक असामान्य और चौंकाने वाली घटना हुई थी। अधिवक्ता राकेश किशोर नाम के वकील ने अदालत की कार्यवाही के दौरान मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की। बताया जाता है कि यह सब एक याचिका की सुनवाई के दौरान हुआ, जब वकील ने नारेबाजी करते हुए अदालत में अफरा-तफरी मचा दी। हालांकि सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत उसे पकड़ लिया और कोर्ट रूम से बाहर ले गए। इस घटना के बाद वकील को अस्थायी रूप से बार काउंसिल से निलंबित किया गया था और उसके खिलाफ दिल्ली पुलिस ने मामला भी दर्ज किया था।
सोशल मीडिया पर ‘महिमामंडन’ को लेकर चिंता
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने अदालत से यह भी अनुरोध किया था कि सोशल मीडिया पर इस घटना के महिमामंडन या प्रचार को रोकने के लिए एक ‘जॉन डो आदेश’ (John Doe Order) जारी किया जाए। बार का तर्क था कि कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इस घटना को ‘न्याय के खिलाफ विद्रोह’ के रूप में पेश किया जा रहा है, जिससे युवा वकीलों और नागरिकों में गलत संदेश जा सकता है। हालांकि अदालत ने इस मांग को भी अस्वीकार कर दिया और कहा कि इस प्रकार की बातें जनता के ध्यान से अपने आप हट जाएंगी, यदि उन्हें तवज्जो न दी जाए।