पाकिस्तान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को खतरे में डालने वाले एक नए कानून के विरोध में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों, जस्टिस मंसूर अली शाह और जस्टिस अतहर मिनाल्लाह, ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया। यह इस्तीफे तब आए जब राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने संसद द्वारा पारित किए गए 27वें संविधान संशोधन विधेयक को अपनी स्वीकृति दी।
क्या है नया संविधान संशोधन?
यह नया कानून पाकिस्तान की कानूनी और राजनीतिक व्यवस्था में बड़े बदलाव लाने वाला है, जिसके तहत:
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सेना के अधिकार बढ़ाए गए: नए कानून में सेना के अधिकारों का विस्तार किया गया है।
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सुप्रीम कोर्ट के अधिकार सीमित: सुप्रीम कोर्ट के अधिकार कम कर दिए गए हैं। अब सुप्रीम कोर्ट केवल माल (सिविल) और फौजदारी (आपराधिक) मामलों की सुनवाई ही कर पाएगा।
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कांस्टिट्यूशन कोर्ट का गठन: संविधान से जुड़े मामलों की निगरानी और उनकी सुनवाई के लिए एक अलग से कांस्टिट्यूशन कोर्ट गठित की जाएगी।
इस संशोधन ने प्रभावी रूप से सुप्रीम कोर्ट से देश के संवैधानिक मामलों की अंतिम व्याख्या करने की शक्ति छीन ली है, जिसने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं।
जजों ने क्यों दिया इस्तीफा?
इस्तीफा देने वाले दोनों न्यायाधीशों ने आरोप लगाया है कि नया कानून संविधान की भावना के खिलाफ है और यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता को पूरी तरह से खत्म कर देगा।
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जस्टिस मंसूर अली शाह का आरोप: उन्होंने अपने त्यागपत्र में स्पष्ट रूप से लिखा है कि यह संशोधन "पाकिस्तान के संविधान पर बड़ा हमला है।" उनके अनुसार, इससे सुप्रीम कोर्ट का न्यायपालिका पर से प्रशासनिक नियंत्रण खत्म हो जाएगा और यह देश के लोकतंत्र को बड़ा नुकसान पहुंचाएगा। उन्होंने कहा कि वह "नई व्यवस्था में कार्य करने में खुद को अक्षम पा रहे हैं, इसलिए पद छोड़ रहा हूं।"
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जस्टिस अतहर मिनाल्लाह का आरोप: जस्टिस मिनाल्लाह ने कहा कि उन्होंने संविधान की रक्षा की शपथ ली थी, लेकिन जब उसी को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, तो वह पद पर नहीं रह सकते। उन्होंने कहा कि यह "उनकी याद में संसद द्वारा संविधान को पहुंचाया गया सबसे बड़ा नुकसान है।"
विधेयक कैसे पारित हुआ?
यह विवादास्पद संविधान संशोधन विधेयक पहले सोमवार को सीनेट में पारित किया गया था। इसके बाद, इसे बुधवार को नेशनल असेंबली में पेश किया गया। नेशनल असेंबली में विपक्ष के कड़े विरोध के बावजूद, सत्तारूढ़ गठबंधन ने इसे दो तिहाई बहुमत से पारित करा लिया। नेशनल असेंबली से पारित होने के कुछ ही घंटों बाद, राष्ट्रपति जरदारी ने इसे स्वीकृति दे दी, जिसके तुरंत बाद दोनों वरिष्ठ न्यायाधीशों ने विरोध स्वरूप इस्तीफा दे दिया। यह घटना पाकिस्तान में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन पर एक बड़ा सवाल खड़ा करती है।