भारत सरकार द्वारा 29 पुराने और जटिल श्रम कानूनों को समाहित करके लाए गए चार नए लेबर कोड (श्रम संहिता) देश के रोज़गार बाज़ार में एक युगांतकारी परिवर्तन लाने के लिए तैयार हैं। यह महज़ कानूनी बदलाव नहीं, बल्कि भारत में काम करने के तरीके, कर्मचारियों की सैलरी संरचना, और कार्यस्थल की सुरक्षा को पूरी तरह से आधुनिक बनाने की एक व्यापक पहल है। ये पुराने कानून, जो कभी कामगारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए थे, अब आर्थिक विकास की गति को धीमा कर रहे थे, जिन्हें तोड़कर अब देश की आर्थिक रफ्तार बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।
गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को मिली कानूनी सुरक्षा
नए लेबर कोड का सबसे महत्वपूर्ण और समकालीन पहलू गिग (Gig) और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को कानूनी ढाँचे में लाना है। आज के डिजिटल युग में लाखों युवा डिलीवरी बॉय, कैब ड्राइवर, और फ्रीलांसर के रूप में काम करते हैं। ‘सोशल सिक्योरिटी कोड’ ने इस बड़े समूह को पहली बार कानूनी मान्यता दी है और इन्हें सामाजिक सुरक्षा (Social Security) के दायरे में लाया गया है। इसका मतलब है कि अब इन्हें भी पेंशन, ग्रेच्युटी और बीमा जैसी योजनाओं का लाभ मिल सकता है। यह कदम ऐप-आधारित काम करने वाले लोगों के लिए सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करता है, जो आधुनिक भारत की बदलती तस्वीर को दर्शाता है।
इसके साथ ही, ‘कोड ऑन वेज’ (वेतन संहिता) देश के हर कोने और हर उद्योग में काम करने वाले कर्मचारी के लिए एक समान न्यूनतम वेतन सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जिससे वेतन संबंधी भेदभाव खत्म होगा।
'बाबूगिरी' से मुक्ति: व्यापार में सुगमता
कंपनियों और नियोक्ताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती पुराने कानूनों के तहत अलग-अलग रजिस्ट्रेशन, दर्जनों लाइसेंस और रिटर्न भरने का कागजी मकड़जाल था। यह 'बाबूगिरी' छोटे उद्योगों को औपचारिक अर्थव्यवस्था (Formal Economy) का हिस्सा बनने से रोकती थी।
नए लेबर कोड ने 29 पुराने कानूनों को मिलाकर सिर्फ चार संहिताओं में समेट दिया है, जिससे नियमों का पालन करना सरल हो गया है:
यह सरलीकरण कंपनियों को पारदर्शिता के साथ काम करने, विस्तार करने और स्थायी नौकरियाँ देने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसके अलावा, ‘इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड’ मध्यम आकार की कंपनियों को कर्मचारियों की भर्ती और छंटनी (Layoffs) में कुछ लचीलापन देता है, जिससे वे बाज़ार की अनिश्चितताओं का सामना अधिक आत्मविश्वास से कर सकें।
कामगारों के लिए सुरक्षित माहौल
सैलरी और सामाजिक सुरक्षा के अलावा, काम करने की जगह भी अब पहले से ज्यादा सुरक्षित होगी। ‘ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड’ के तहत, फैक्ट्री, माइनिंग और कंस्ट्रक्शन जैसे जोखिम भरे कामों में लगे मजदूरों के लिए सख्त सुरक्षा मानक तय किए गए हैं। इसका सीधा प्रभाव यह होगा कि कामगारों को एक सम्मानजनक, स्वस्थ और सुरक्षित माहौल मिलेगा, जिससे उनकी उत्पादकता भी बढ़ेगी।
जानकारों का मानना है कि ये सुधार, जहाँ लागू हुए हैं, वहाँ रोजगार सृजन और निवेश को बढ़ावा मिला है। नए लेबर कोड कर्मचारियों और कंपनियों, दोनों के लिए ‘win-win’ की स्थिति पैदा करते हैं। अगर इन्हें प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो भारत का लेबर मार्केट न केवल आधुनिक बनेगा, बल्कि देश के करोड़ों युवाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण रोजगार के अवसर भी सुनिश्चित करेगा।