भारतीय निवेशकों के लिए यह साल किसी जैकपॉट से कम नहीं रहा। MCX (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज) पर सोने ने जहाँ 78% का रिटर्न देकर कीमतों को ₹1.33 लाख के पार पहुँचा दिया, वहीं चांदी ने 144% की तूफानी बढ़त के साथ ₹2 लाख प्रति किलो का मनोवैज्ञानिक स्तर भी पार कर लिया। लेकिन इस चकाचौंध के बीच असली कहानी प्लैटिनम और कॉपर ने लिखी है।
1. प्लैटिनम: बाजार का 'डार्क हॉर्स'
प्लैटिनम ने 2025 में वह कर दिखाया जो पिछले चार दशकों में नहीं हुआ था। साल की शुरुआत $1,000 प्रति औंस से नीचे करने वाली यह धातु $2,300 के पार निकल गई।
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140% का रिटर्न: यह 1987 के बाद की सबसे बड़ी सालाना तेजी है।
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सप्लाई संकट: दक्षिण अफ्रीका, जो दुनिया का सबसे बड़ा प्लैटिनम उत्पादक है, वहां बिजली संकट और श्रम विवादों के कारण सप्लाई चेन ठप पड़ गई। इस किल्लत ने कीमतों में आग लगा दी।
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चीन और नई तकनीक: चीन में औद्योगिक मांग और वैश्विक स्तर पर हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक में प्लैटिनम के बढ़ते उपयोग ने इसे निवेशकों की पहली पसंद बना दिया।
2. कॉपर: 'न्यू गोल्ड' का उदय
तांबे को अब केवल एक बेस मेटल नहीं, बल्कि 'न्यू गोल्ड' कहा जा रहा है। लंदन मेटल एक्सचेंज (LME) पर कॉपर $12,000 प्रति टन के रिकॉर्ड स्तर को पार कर गया।
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AI और EV का कनेक्शन: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के लिए बन रहे विशाल डेटा सेंटर्स और इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की बढ़ती मैन्युफैक्चरिंग में कॉपर का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है।
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सप्लाई में रुकावट: चिली और कांगो जैसे देशों में प्राकृतिक आपदाओं और खनन दुर्घटनाओं ने वैश्विक स्टॉक को न्यूनतम स्तर पर पहुँचा दिया।
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जमाखोरी: अमेरिकी और यूरोपीय देशों ने भविष्य के व्यापारिक प्रतिबंधों के डर से कॉपर की भारी जमाखोरी शुरू कर दी है, जिससे कीमतों को और सहारा मिला।
3. निवेशकों के लिए क्या है सबक?
जिगर त्रिवेदी जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 ने यह साबित कर दिया कि कमोडिटी पोर्टफोलियो में केवल सोना-चांदी रखना काफी नहीं है। प्लैटिनम और कॉपर जैसी औद्योगिक धातुओं ने पोर्टफोलियो को वह डाइवर्सिफिकेशन और 'एक्स्ट्रा बूस्ट' दिया जिसकी तलाश आधुनिक निवेशकों को रहती है।
2026 की राह: क्या तेजी बनी रहेगी?
गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2026 में नई खदानों के शुरू होने से सप्लाई में सुधार हो सकता है। कॉपर की कीमतें $10,000-$11,000 के दायरे में स्थिर हो सकती हैं। हालांकि, प्लैटिनम की चमक अभी और बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि ग्रीन एनर्जी ट्रांजिशन में इसकी भूमिका अहम होती जा रही है।