मुंबई, 3 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) माथे पर बिंदी लगाना भारतीय संस्कृति और फैशन का एक अभिन्न अंग है। आजकल बाज़ार में विभिन्न डिज़ाइन और रंगों की 'स्टिक-ऑन' (चिपकने वाली) बिंदियां उपलब्ध हैं। हालांकि, त्वचा विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि फैशन की यह तेज़ पसंद त्वचा को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे 'बिंदी ल्यूकोडर्मा' (Bindi Leukoderma) नामक स्थिति पैदा हो सकती है।
क्या है बिंदी ल्यूकोडर्मा?
त्वचा विशेषज्ञ बताते हैं कि बिंदी ल्यूकोडर्मा संपर्क से होने वाली एक प्रकार की हाइपोपिग्मेंटेशन (रंगहीनता) है। इसका कारण बिंदी को चिपकाने वाले पदार्थ में मौजूद जहरीले रसायन होते हैं, जिन्हें मेलानोसाइटोटॉक्सिक केमिकल्स (Melanocytotoxic Chemicals) कहा जाता है।
प्रभाव: इन रसायनों के कारण, माथे पर वह बिंदु, जहाँ बिंदी नियमित रूप से लगाई जाती है, धीरे-धीरे अपने प्राकृतिक रंगद्रव्य (Skin Pigment) को खोने लगता है।
दिखावट: यह त्वचा की बीमारी विटिलिगो (Vitiligo) जैसी दिखती है, जिसमें त्वचा पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं।
ज़हर: 'PTBP' नामक रसायन
आधुनिक बिंदी, जो कपड़े या प्लास्टिक के पैच से बनी होती है, को चिपकाने के लिए उपयोग किए जाने वाले चिपकने वाले पदार्थों में एक कुख्यात रसायन होता है: पी-टर्टियरी ब्यूटाइल फिनोल (p-tertiary butyl phenol - PTBP)।
खतरा: PTBP रंगद्रव्य बनाने वाली कोशिकाओं के लिए अत्यंत विषाक्त (Highly Toxic) होता है और संपर्क स्थल पर स्थायी रूप से रंगहीनता (Depigmentation) को ट्रिगर कर सकता है।
जोखिम में वृद्धि: भारत जैसे गर्म और आर्द्र (Humid) जलवायु वाले स्थानों पर, जहाँ बिंदी पारंपरिक रूप से पहनी जाती है, गर्मी के कारण रसायन का त्वचा में प्रवेश बढ़ जाता है, जिससे स्थिति बिगड़ने का खतरा अधिक होता है।
रोकथाम और सुरक्षित विकल्प
डॉक्टरों की सलाह है कि इस तरह की समस्या से बचने के लिए सावधानी बरतना इलाज से बेहतर है।
स्टिक-ऑन बिंदियों का सीमित उपयोग: सेल्फ-एडहेसिव बिंदियों का उपयोग केवल कभी-कभार के लिए ही सीमित रखें। संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।
एलर्जी के संकेत पर तुरंत बंद करें: कई अध्ययनों से पता चलता है कि वास्तविक रंगहीनता शुरू होने से पहले, चार में से तीन महिलाओं को एलर्जी की प्रतिक्रिया होती है। यदि कोई इस चरण में बिंदी का उपयोग बंद कर दे, तो ल्यूकोडर्मा को अक्सर रोका जा सकता है।
सबसे सुरक्षित और पारंपरिक विकल्प: कुमकुम
विशेषज्ञ इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ऑर्गेनिक कुमकुम (Organic Kumkum) ही सबसे सुरक्षित विकल्प है।
सुरक्षा: पारंपरिक रूप से, बिंदियां कुमकुम, वनस्पति (Vegetable) या खनिज (Mineral) रंगों से बनाई जाती थीं और उनमें हानिकारक रसायन नहीं होते थे। इनमें रंगहीनता का कोई जोखिम नहीं था।
सिंदूर से भी सतर्कता: कुछ सिंदूर में एजो डाई (Azo Dyes) हो सकते हैं, जो संवेदनशील व्यक्तियों में ल्यूकोडर्मा का कारण बन सकते हैं। इसलिए पारंपरिक कुमकुम को प्राथमिकता दें।
हल्दी का उपयोग: आप हल्दी का उपयोग करके घर पर भी अपना कुमकुम बना सकते हैं। इससे माथे पर ज़्यादा से ज़्यादा अस्थायी पीलापन आ सकता है, लेकिन यह हानिकारक नहीं है।
नोट: कुछ लोग नींबू और घी जैसी सामग्री का उपयोग करके बिंदी बनाते हैं। हालांकि, तैलीय त्वचा पर घी मुहांसे पैदा कर सकता है, और कुछ त्वचा के प्रकारों के लिए नींबू अम्लीय जलन (Alkaline Burns) पैदा कर सकता है। ऐसे में किसी भी नए घरेलू नुस्खे को आज़माने से पहले पैच टेस्ट (त्वचा के छोटे हिस्से पर परीक्षण) करना हमेशा बेहतर होता है।